बिहार चुनाव राज्य की राजनीतिक यात्रा का एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। भारत के सबसे राजनीतिक रूप से जागरूक और ऐतिहासिक राज्यों में से एक बिहार में हर चुनाव राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनता है। इस बार मुकाबला सिर्फ सत्ता का नहीं, बल्कि पहचान, विकास और सुशासन की दिशा तय करने का है।
लेकिन इस बार मामला सिर्फ सत्ता का नहीं है — यह पहचान, विकास, सुशासन और लोकतंत्र की नई परिभाषा का प्रश्न बन गया है।
मैदान में कई बड़े गठबंधन हैं — एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) जिसमें नीतीश कुमार और भाजपा शामिल हैं, INDIA गठबंधन जिसका नेतृत्व तेजस्वी यादव की आरजेडी और कांग्रेस कर रही हैं, और एक नया खिलाड़ी प्रशांत किशोर का जन सुराज आंदोलन। राजनीतिक मंच पर अब एक त्रिकोणीय मुकाबला तैयार हो चुका है।

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मंडल राजनीति से लेकर आधुनिक बिहार की नई दिशा तक
बिहार हमेशा से जातिगत राजनीति और जन आंदोलनों की प्रयोगशाला रहा है। 1990 के दशक की मंडल राजनीति ने लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं को सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व के प्रतीक के रूप में उभारा। हालांकि, शासन और विकास उस दौर में पीछे छूट गया और “बिहारी स्वाभिमान” का नारा जनता की भावनाओं पर छा गया।
फिर आए नीतीश कुमार, जिन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत में सुधारवादी नेता के रूप में पहचान बनाई। सड़कों, शिक्षा और कानून व्यवस्था में सुधार ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया। लेकिन दो दशक बाद आज सवाल उठता है — क्या नीतीश का “सुशासन मॉडल” अब थक चुका है? इसलिए 2025 का चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि पिछले 25 वर्षों के बिहार के सफर का जनमत संग्रह बन गया है।
कौन-कौन हैं सत्ता की दौड़ में?
एनडीए (भाजपा + जदयू + सहयोगी दल)
बिहार चुनाव 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्हें बिहार का “राजनीतिक मौसम विज्ञानी” कहा जाता है, एक बार फिर भाजपा के साथ मिलकर एनडीए के झंडे तले मैदान में हैं। बिहार चुनाव 2025 के इस मुकाबले में नीतीश का सुशासन और प्रशासनिक अनुभव अब भी बड़ी ताकत माने जा रहे हैं। भाजपा भी बिहार चुनाव 2025 में अपने मजबूत संगठन, राष्ट्रीय नेतृत्व और हिंदुत्व समर्थक वोट बैंक के सहारे जीत दोहराने की कोशिश में है। हालांकि, बिहार चुनाव 2025 में एनडीए को जमीनी स्तर पर तालमेल और थकान जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। फिर भी बिहार चुनाव 2025 नीतीश कुमार के लिए एक बार फिर अपनी लोकप्रियता साबित करने का मौका है — और शायद उनकी राजनीतिक विरासत का निर्णायक अध्याय भी।
INDIA गठबंधन (आरजेडी + कांग्रेस + वामपंथी दल)
बिहार चुनाव 2025 में तेजस्वी यादव युवा और बेरोजगार वर्ग के लिए नई उम्मीद हैं। वे बिहार चुनाव 2025 में रोजगार और विकास के मुद्दे पर जोर दे रहे हैं।
उनका नारा “नौकरी और न्याय” बिहार चुनाव 2025 में युवाओं के बीच लोकप्रिय है। कांग्रेस और वाम दल भी बिहार चुनाव 2025 में गठबंधन के साथ हैं।
गठबंधन नीतीश सरकार के खिलाफ बढ़ती नाराज़गी का फायदा उठाकर बिहार चुनाव 2025 में नई दिशा देने की कोशिश कर रहा है।
जन सुराज आंदोलन (प्रशांत किशोर)
इस चुनाव का सबसे बड़ा “वाइल्ड कार्ड” हैं प्रशांत किशोर (PK)। जो कभी भाजपा, कांग्रेस और तृणमूल जैसी पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति बनाते थे, अब खुद राजनीति में उतर चुके हैं। उनका आंदोलन जन सुराज खुद को पारंपरिक राजनीति से अलग रखता है — यह शासन, पारदर्शिता और नागरिक भागीदारी की बात करता है। हालाँकि यह अभी बड़े गठबंधनों के लिए सीधी चुनौती नहीं है, लेकिन शहरी वोटरों और युवाओं के बीच इसकी पैठ लगातार बढ़ रही है।

बेरोज़गारी से विकास तक की जंग
बेरोजगारी और पलायन
बिहार के लाखों युवा आज भी रोजगार की तलाश में दिल्ली, मुंबई और दक्षिण भारत की ओर पलायन कर रहे हैं। नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि 18 से 35 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी दर देश में सबसे अधिक है, जो बिहार के लिए चिंता का विषय बन चुका है। इस पृष्ठभूमि में आने वाला बिहार चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन की दौड़ नहीं, बल्कि राज्य के भविष्य से जुड़ा आर्थिक और सामाजिक सवाल बन गया है। स्थानीय उद्योगों का विकास, निवेश को बढ़ावा, और बिहार में नौकरी निर्माण जैसे मुद्दे अब बिहार चुनाव की बहस के केंद्र में हैं। यदि कोई दल या नेता इस सवाल का ठोस समाधान प्रस्तुत कर सके, तो वही बिहार के युवाओं की उम्मीदों का सच्चा प्रतिनिधि साबित होगा।
शिक्षा और कौशल विकास
राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी भी शिक्षक की कमी, परीक्षा घोटाले और खराब ढांचा बड़ी चुनौतियाँ हैं। नीतीश की “साइकिल योजना” और “कन्या उत्थान” जैसी योजनाएँ सराही गईं, पर अब शिक्षा को आधुनिक कौशल और रोजगार से जोड़ने की मांग बढ़ रही है।
कानून-व्यवस्था
महिलाओं की सुरक्षा और जमीन विवाद जैसे मुद्दे फिर से सुर्खियों में हैं। शुरुआती दौर में नीतीश ने अपराध पर लगाम लगाई थी, लेकिन हाल के वर्षों में बढ़ते अपराधों ने कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं।
विकास बनाम जाति राजनीति
बिहार की राजनीति में जाति समीकरण आज भी अहम भूमिका निभाते हैं। भाजपा के पीछे सवर्ण, आरजेडी के साथ यादव-मुस्लिम गठजोड़, और जदयू को कुर्मी-कोइरी समर्थन मिलना आम पैटर्न है। फिर भी इस बार मुद्दा आधारित वोटिंग जातीय निष्ठाओं को चुनौती दे रही है।
महिला सशक्तिकरण
नीतीश कुमार की महिला आरक्षण नीति और शराबबंदी कानून ने राज्य में मिश्रित प्रभाव डाला है। जहाँ कुछ महिलाएँ इन नीतियों की समर्थक हैं, वहीं कई गरीब परिवारों पर इसके दुष्प्रभाव की आलोचना भी हो रही है।
डिजिटल युद्ध
बिहार चुनाव 2025 अब डिजिटल युग का चुनाव बन चुका है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स — खासकर WhatsApp, Facebook, YouTube और X (Twitter) — पर चुनावी प्रचार की बाढ़ आ गई है।
- भाजपा का IT सेल मोदी और नीतीश के विकास मॉडल पर फोकस कर रहा है।
- आरजेडी तेजस्वी की सोशल मीडिया अपील और भावनात्मक जुड़ाव पर जोर दे रही है।
- जन सुराज डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जनता के मुद्दे सीधे एकत्र कर रहा है।
साथ ही, फेक न्यूज़, मीम वॉर और AI-जनरेटेड कंटेंट ने प्रचार की दिशा ही बदल दी है।
जनता का मूड: शुरुआती सर्वे क्या कहते हैं
जुलाई 2025 के सर्वेक्षणों के अनुसार:
- एनडीए (भाजपा + जदयू): 43–46% वोट शेयर
- INDIA गठबंधन (आरजेडी + कांग्रेस + वाम): 39–42% वोट शेयर
- जन सुराज और अन्य: 5–8% वोट शेयर
हालाँकि बिहार की राजनीति में अंतिम क्षणों के झटके आम बात हैं — मतदान प्रतिशत, स्थानीय प्रत्याशी और जातीय समीकरण नतीजे पलट सकते हैं।
मुख्य रणभूमियाँ: किन जिलों पर सबकी नजर
- पटना – शहरी मतदाता और युवा वर्ग जन सुराज या आरजेडी की ओर झुक सकते हैं।
- गया – विकास की कमी से एनडीए को चुनौती।
- दरभंगा – भाजपा का गढ़, लेकिन आरजेडी की वापसी की कोशिश।
- सिवान और छपरा – पारंपरिक आरजेडी इलाका, जहाँ जदयू सेंध लगाने में जुटी है।
- भागलपुर – औद्योगिक केंद्र, बेरोजगारी यहाँ बड़ा मुद्दा है।

नीतीश कुमार: बुजुर्ग लेकिन अनुभवी योद्धा
नीतीश कुमार के लिए यह बिहार चुनाव उनके लंबे राजनीतिक करियर की शायद अंतिम बड़ी परीक्षा साबित हो सकता है। दशकों तक बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने के बावजूद, बार-बार गठबंधन बदलने की उनकी आदत ने उनकी स्थिर और सुसंगत नेता की छवि को कमजोर किया है। फिर भी, बिहार के कई हिस्सों में आज भी उनके समर्थक उन्हें बिहार को स्थिरता और विकास की दिशा देने वाला “विकास पुरुष” मानते हैं।
इस बिहार चुनाव में नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वे बिहार के लोगों को यह विश्वास दिला सकें कि बदलते राजनीतिक समीकरणों के बावजूद उनका विज़न बिहार की प्रगति, शिक्षा और रोज़गार पर केंद्रित है। यदि वे यह संदेश प्रभावी ढंग से दे पाते हैं, तो बिहार चुनाव में उनकी भूमिका फिर से निर्णायक बन सकती है और वे राज्य की राजनीति में नई ऊर्जा भर सकते हैं।
तेजस्वी यादव: बदलाव का चेहरा या पुरानी विरासत?
तेजस्वी की सबसे बड़ी चुनौती है — अपने पिता की विरासत से आगे बढ़कर आधुनिक बिहार के नेता के रूप में पहचान बनाना। आगामी बिहार चुनाव में यह चुनौती और गहरी हो जाती है, क्योंकि युवा मतदाता अब बदलाव और नए नेतृत्व की तलाश में हैं। उनका ध्यान बिहार में रोजगार, बिहार की शिक्षा व्यवस्था और भ्रष्टाचार-मुक्त शासन पर है, जिससे युवा वर्ग उनसे गहराई से जुड़ रहा है। यदि वे बिहार चुनाव में लोगों को भरोसा दिला पाते हैं कि वे लालू राज से अलग और नए विज़न वाले नेता हैं,
तो यह बिहार चुनाव राज्य की राजनीति में पीढ़ीगत परिवर्तन का प्रतीक बन सकता है। तेजस्वी का लक्ष्य एक नया, सक्षम और आत्मनिर्भर बिहार बनाना है, जहाँ विकास, अवसर और ईमानदार शासन साथ-साथ चलें। यही सपना आज के बिहार के युवा देख रहे हैं, और यही भावना इस बिहार चुनाव की असली दिशा तय कर सकती है।
प्रशांत किशोर: रणनीतिकार से राजनेता तक
प्रशांत किशोर का प्रवेश इस चुनाव को और दिलचस्प बना रहा है। जो कभी मोदी और नीतीश की जीत के सूत्रधार थे, अब खुद जनता से सीधे संवाद कर रहे हैं। उनका जन सुराज आंदोलन मुद्दों की राजनीति को नया आकार दे सकता है, भले ही अभी उन्हें सीमित सफलता मिले।
राजनीति की असली ताकत
बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों पर ही टिकी है —
- यादव (15%), मुस्लिम (17%) और दलित (16%) वोट आरजेडी की ताकत हैं।
- सवर्ण (12–13%) आमतौर पर भाजपा के साथ रहते हैं।
- कुर्मी-कोइरी (10–12%) नीतीश का आधार माने जाते हैं।
छोटे समुदायों और क्षेत्रीय दलों की भूमिका इस बार भी निर्णायक हो सकती है।
महिलाएँ और युवा: निर्णायक मतदाता
बिहार में 57% से अधिक महिला मतदाता हैं और 35 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की संख्या सबसे ज़्यादा है। महिलाओं के लिए आरक्षण, सुरक्षा और शिक्षा जैसी नीतियाँ चुनावी रुझान तय करेंगी। वहीं, सोशल मीडिया से प्रभावित युवा वोटर इस बार चुनाव की दिशा बदल सकते हैं।
राष्ट्रीय प्रभाव: बिहार से आगे की राजनीति
बिहार का नतीजा राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर डालेगा।
- अगर भाजपा-एनडीए जीतती है, तो यह 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए मनोबल बढ़ाने वाला परिणाम होगा।
- अगर INDIA गठबंधन को सफलता मिलती है, तो विपक्ष को नई ऊर्जा मिलेगी।
- वहीं, जन सुराज अगर सम्मानजनक प्रदर्शन करता है, तो यह भारत में नई “मुद्दा आधारित राजनीति” की शुरुआत हो सकती है।
आगे की राह: चुनौतियाँ और अवसर
बिहार के सामने विकास के कई अवसर हैं — उद्योग, शिक्षा और बुनियादी ढाँचा अब भी पिछड़े हैं। जब तक राजनीति जाति और संरक्षणवाद से ऊपर नहीं उठेगी, तब तक बिहार का सपना अधूरा रहेगा। 2025 का चुनाव यही तय करेगा कि बिहार कैसे शासित होना चाहता है, न कि सिर्फ कौन शासन करेगा।
एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत
बिहार के चुनाव हमेशा भारत की लोकतांत्रिक जटिलताओं का आईना रहे हैं —
जहाँ परंपरा और बदलाव, भावना और नीति, पहचान और आकांक्षा आमने-सामने होते हैं। 2025 का यह चुनाव भी वैसा ही है — बस फर्क इतना है कि इस बार उम्मीदें कहीं ज्यादा बड़ी हैं।

चाहे नीतीश कुमार अपनी विरासत बचा पाएं, या तेजस्वी यादव नई पीढ़ी की राजनीति की शुरुआत करें, या फिर प्रशांत किशोर सिस्टम के बाहर से राजनीति की परिभाषा बदल दें — यह चुनाव तय करेगा कि बिहार का भविष्य कैसा होगा, और शायद भारत की राजनीति की दिशा भी।
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